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इश्क़ को भी इश्क़ हो तो फिर मैं देखूं इश्क़ को…!
कैसे तड़पे, कैसे रोये, इश्क़ अपने इश्क़ में…!
बहुत खुबसुरत होती हैं एक तरफा इश्क़…
ना कोई शिकायत होती हैं ना कोई बेवफा कहलाता है..!!
ऐ इश्क, तुझे पाने की कोई राह नहीं;
तू तो उसे ही मिलेगी, जिसे तेरी परवाह नहीं।
रिश्वत भी नहीं लेता कमबख्त जान छोड़ने की, ऐ सनम ये तेरा इश्क मुझे बहुत ईमानदार लगता है।
उसे पाना, उसी खोना,उसी के लिए रोना, अगर यही इश्क़ है तो हम तनहा ही अच्छे हैं..
गीली लकड़ी सा इश्क उन्होंने सुलगाया है, ना पूरा जल पाया कभी, ना बुझ पाया है।
चलते तो हैं वो साथ मेरे पर अंदाज देखिए, जैसे की इश्क करके वो एहसान कर रहें है।
तेरे दिल मैं मेरी साँसों को पनाह मिल जाये तेरे इश्क़ में मेरी जान फ़ना हो जाये
ये ज़ुल्म तो ऐ जल्लाद ना कर… ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
तुझसे बहुत कहा था कि मुझे अपना न बना,
अब दिल मेरा तोड़ कर मेरा तमाशा न बना।
जब लिख ही दिया है तूने मेरा नाम रेत पर,
मिटने का फिर मेरे तू तमाशा भी देख ले।
मेरे गुनाह साबित करने की ज़हमत ना उठा,
बस खबर कर दे क्या क्या कबूल करना है।
भूल पाना मुझे इतना आसान तो नहीं है,
बातों-बातों में ही बातों से निकल आऊंगा।
गिर जाये जो दीवार तो मातम नहीं करते… करते हैं बहुत लोग मगर हम नहीं करते
इश्क़ तो खुद ही हो जाता है, दिल भी अपना खो जाता है, जब ऐसा हो जाता है… तो दिल बेकरार हो जाता है
एक बात पूछें तुमसे जरा दिल पर हाथ रखकर फरमायें, जो इश्क़ हमसे सीखा था अब वो किससे करते हो।
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे,
ऐसे माहौल में अब किसको पराया समझें।
फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ इश्क मुकम्मल,
इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है।
नजान से राहों पर चलने का तजुर्बा नहीं था,
इश्क़ की राह ने मुझे एक हुनरमंद राही बना दिया
यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी की इन्तहा,
कि तेरे करीब से गुज़र गए तेरे ही ख्याल से!
नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब-ए-हुस्न को,
निगाह-ए-इश्क तो पत्थर भी चीर देती है !
इश्क वो खेल नहीं जो छोटे दिल वाले खेले… रूह तक कांप जाती हैं, सदमे सहते सहते…!!!
शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ यह दिल ही काफ़ी है तेरी याद में जलने के लिए
तू आशिक है मेरा, मैं तेरी दीवानगी मोहब्बत में सनम, मैं तेरी हो चली
आहिस्ता आहिस्ता दिल में समा गये तुम इश्क़ से इश्क़ करना सीख गए तुम
अब न कोई हमें मोहब्बत का यकीन दिलाये,
हमें रूह में भी बसा कर निकाला है किसी ने।
कोई एहसान करदे मुझपे इतना सा बता कर,
भुलाया कैसे जाता है दिल तोड़ने वाले को।
कुछ मोहब्बत का नशा था पहले हमको,
दिल जो टूटा तो नशे से मोहब्बत हो गई।
किस क़दर अनजान है सिलसिला ए इश्क़, मोहब्बत तो कायम ही रहती है मगर करने वाले टूट जाते हैं
इश्क़ को भी इश्क़ हो तो फिर मैं देखूं इश्क़ को…! कैसे तड़पे, कैसे रोये, इश्क़ अपने इश्क़ में…!
इश्क़ में ऐसी करामात नहीं देखी हमने. रूबरू यार हो और होश में दीवाना हो
तेरी मोबब्बत के जो रंग है, रंग दे मुझे इस कदर… खुद को भूल जायु मैं, इस दुनिया से हो जाऊ बेख़बर
उस से कह दो की मेरी सज़ा कुछ कम कर दे,
हम पेशे से मुज़रिम नहीं हैं, बस गलती से इश्क हुआ था !
दिल-इ-गुमराह को काश ये मालूम होता,
प्यार तब तक हसीं है जब तक नहीं होता !
एहसास-इ-मोहब्बत के लिए बस इतना ही काफी है,
तेरे बगैर भी हम तेरे ही रहते हैं !
कभी कभी दूरियां ही बता जाती है मेरी अहमियत,
जो पास होने पर अक्सर नजरअंदाज की जाती है।
खुदा ने कहा, भुला क्यू नहीं देते उसे,
मैंने कहा इतनी फिकर है तो मिला क्यू नहीं देते।
सब अपने से लगते है,
लेकिन सिर्फ बातो से।
नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार-ए-इश्क में, किसी को भूल कर सो जाना, आसान नहीं होता।
है कोई वकील इस जहान में, जो हारा हुआ इश्क जीता दे मुझ को।
तकिये के नीचे दबा के रखे हैँ तुम्हारे ख्याल, एक तेरा अक्स, एक तेरा इश्क़, ढेरो सवाल और तेरा इंतज़ार।
इश्क कर लिजीए बेइन्तेहा ~किताबोँ~ से, जिन्दगी के पन्ने इन्ही से मुक्कमल होते हैं।
मेरे करीब ना आना कोई, खुद ही कह देता हूं,
अफवाह उड़ी है के मै सबको दगा देता हूं।
नींद आ जाए तो सो भी जाया करो,
यूं रातो को जागने से मेहबूब लौटा नहीं करते।
उनसे नज़रें क्या मिली,रोशन फ़िज़ाएं हो गयीं,
आज जाना प्यार की,जादूगरी क्या चीज़ है
किस क़दर अनजान है सिलसिला ए इश्क़ का,
मोहब्बत तो कायम ही रहती है मगर करने वाले टूट जाते हैं
रोज जले फिर भी खाक ना हुए…
अजीब हैं ये इशक भी बूझकर भी राख न हुए…
हम भी बिकने गए थे बाज़ार-ऐ-इश्क में, क्या पता था वफ़ा करने वालों को लोग ख़रीदा नहीं करते।
ये भी एक तमाशा है, इश्क और मोहब्बत में दोस्त, दिल किसी का होता है और बस किसी का चलता है।
तेरे ख़त में इश्क़ की गवाही आज भी है, हर्फ़ धुंधले हो गए हैं मगर स्याही आज भी है।
दिलो से खेलना हमें भी आता है पर …
जिस खेल में खिलोना टूट जाय, वो खेल हमें बिल्कुल पसंद नही!!!
गुज़ारिश है कि तकलीफे ना दो, जख्मी हुए…!!!
कहीं टूट गया तो किससे खेलोगी।
कभी कभी दूरियां ही बता जाती है मेरी अहमियत,
जो पास होने पर अक्सर नजरअंदाज की जाती है।
आराम से कट रही थी तो अच्छी थी जिंदगी
तू कहाँ इन आँखों की बातों में आ गयी।
मेरे हमदम, मेरे हमनवा, प्यार तेरा, मेरी ज़िन्दगी, खुदा के बाद, मैं करूँ दिल से बस तेरी ही बन्दगी !!
जरा देखो तो ये दरवाजे पर दस्तक किसने दी है,
अगर ‘इश्क’ हो तो कहना, अब दिल यहाँ नही रहता।
घुटन सी होने लगी है, इश्क़ जताते हुए,
मैं खुद से रूठ जाता हूँ, तुम्हे मनाते हुए।
इश्क ना होने के सिर्फ दो ही तरीके थे,
या दिल ना होता या तुम ना होते।
तमन्नाओ की महफिल तो हर कोई सजाता है
कामयाब तो वो होता है जो तकदीर लेकर आता है…
कल तक उड़ती थी जो मुँह तक आज पैरों से लिपट गई…!!!
चंद बूँदे क्या बरसी बरसात की धूल की फ़ितरत ही बदल गई…!!!
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